।। एक पत्र लिखूं ये सोच रही हूँ ।।
एक पत्र लिखूं ये सोच रही हूँ।
है नाम तुम्हारे ?
ये सोच रही हूँ।
दिल में हैं जज़्बात हज़ारों,
नाप-तोल लिखूं ये सोच रही हूँ।।
एक पत्र लिखूं ये सोच रही हूँ ....
इस ख़ालीपन का ख़ाली तुम हो,
इस सूनेपन में सूना तुम।
बेपरवाह इन नम आँखों में,
बेवजह की हंसी भी तुम।
उलझी हैं कुछ गांठे दिल में ,
बहुत अधूरे ख़्वाब हैं।
सुन के भी अनसुना न कर दो,
ये सोच जुबां पे तोल रही हूँ।
एक पत्र लिखूं ये सोच रही हूँ ....
है नाम तुम्हारे ? ये सोच रही हूँ...
है नाम तुम्हारे ?
दिल में हैं जज़्बात हज़ारों,
नाप-तोल लिखूं ये सोच रही हूँ।।
एक पत्र लिखूं ये सोच रही हूँ ....
इस ख़ालीपन का ख़ाली तुम हो,
इस सूनेपन में सूना तुम।
बेपरवाह इन नम आँखों में,
बेवजह की हंसी भी तुम।
उलझी हैं कुछ गांठे दिल में ,
बहुत अधूरे ख़्वाब हैं।
सुन के भी अनसुना न कर दो,
ये सोच जुबां पे तोल रही हूँ।
एक पत्र लिखूं ये सोच रही हूँ ....
है नाम तुम्हारे ? ये सोच रही हूँ...
Comments
Post a Comment