। । क्या रोक सकोगे ? अब जब जाग उठी हूँ मैं । ।



















उन अंधेरों से, जंजालों से,उन उलझन भरे सवालों से।  
उन तकलीफों भरे हालातों से,उन अधूरी-सी मुलाकातों  से।
हाँ अब जाग उठी हूँ मैं। क्या रोक सकोगे ?

उन सपनों से कि वो आते और आकर जानते हाल हमारा। 
उस जज़्बे से - की सब छोड़ छाड़ दे देते हम साथ तुम्हारा।  
 उन नम आंखों के गढ़ों से,
उन सिसकी भरे हालातों से,
उन ख़्वाबों से, ख्यालों से,
उन नम आंखों  के सवालों से।
हाँ अब जाग उठी हूँ मैं।  

अब जब खुद को जान गयी हूँ,
भला बुरा पहचान गयी हूँ।
नई सोच नए इरादे लिए,
बढ़ना है आगे मान गयी हूँ।
क्या रोक सकोगे ?अब जब जाग उठी हूँ मैं।  





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